आज जब किराने का सामान खरीदने पड़ोस के बड़े स्टोर में गया तो हमेशा की तरह ज़रूरत से ज़्यादा सामान अपने बास्केट में डाल रहा था. दो टीन किस्म के आम दिख रहे थे. दाम पूछ कर या देख कर लेने की आदत तो अब रही नही. पास ही में एक माताजी अपनी १०-१२ साल की बेटी के साथ खड़ी उन्ही आमों को देख रही थी. दाम वहाँ लिखे नही थे. उन्होने मुझसे पूछा की ये आम कितने रुपये किलो है. मैने स्टोर की एक कर्मी से पूछ कर उन्हे बता दिया. चालीस रुपये किलो. फिर वापस अपनी बास्केट भरने में लग गया.
काउंटर पर बिल कराने आया तो वही माताजी कतार में मुझसे पीछे आ लगी. हाथ में १० रुपये के कुल चार नोट थे. बास्केट थी नही, एक छोटा प्लास्टिक का थैला था जो शायद वो घर से लेकर आई थी. आजकल प्लास्टिक के थैले के भी तो पैसे लगते हैं. शायद इसलिए. मेरा सामान कुछ ज़्यादा था. दो बड़े प्लास्टिक के थैले भर गये. कुल हज़ार रुपये का बिल आया. मेरे लिए कुछ ज़्यादा नही था. सामान लेकर निकलने को हुआ तो माताजी ने अपनी छोटी थैली काउंटर पर रखी. उत्सुकतावश देखने लगा. उसमें ३-४ छोटे बैंगन थे, कोई ढाई सौ ग्राम भिंडी , थोड़ी मिर्ची और एक करेला. उनके एक हाथ में १० रुपये के चार नोट थे और दूसरे हाथ में २ आम. वही चालीस रुपये किलो वाले आम. पीछे उनकी बेटी खड़ी थी. काउंटर का कर्मी एक एक सब्जी का वजन कर रहा था और वो हर बार दाम पूछती जा रही थी. कितने हुए - उन्होने पूछा. काउंटर के कर्मी ने कहा - ३७ रुपये. माताजी ने आपना सामान एक बार और देखा. शायद कुछ कम कर सकें, तो आम आ जाए. पर नही. गुंजाइश नही थी. आम उन्होने किनारे रख दिए और ४० रुपये उसकी तरफ बढ़ा दिए. ३ रुपये जो वापस मिले वो अपनी साड़ी के आँचल में गाँठ बना कर बाँध लिए. दिल भर आया. शायद पहली बार मुझे आम अच्छे नही लग रहे थे.
काउंटर पर बिल कराने आया तो वही माताजी कतार में मुझसे पीछे आ लगी. हाथ में १० रुपये के कुल चार नोट थे. बास्केट थी नही, एक छोटा प्लास्टिक का थैला था जो शायद वो घर से लेकर आई थी. आजकल प्लास्टिक के थैले के भी तो पैसे लगते हैं. शायद इसलिए. मेरा सामान कुछ ज़्यादा था. दो बड़े प्लास्टिक के थैले भर गये. कुल हज़ार रुपये का बिल आया. मेरे लिए कुछ ज़्यादा नही था. सामान लेकर निकलने को हुआ तो माताजी ने अपनी छोटी थैली काउंटर पर रखी. उत्सुकतावश देखने लगा. उसमें ३-४ छोटे बैंगन थे, कोई ढाई सौ ग्राम भिंडी , थोड़ी मिर्ची और एक करेला. उनके एक हाथ में १० रुपये के चार नोट थे और दूसरे हाथ में २ आम. वही चालीस रुपये किलो वाले आम. पीछे उनकी बेटी खड़ी थी. काउंटर का कर्मी एक एक सब्जी का वजन कर रहा था और वो हर बार दाम पूछती जा रही थी. कितने हुए - उन्होने पूछा. काउंटर के कर्मी ने कहा - ३७ रुपये. माताजी ने आपना सामान एक बार और देखा. शायद कुछ कम कर सकें, तो आम आ जाए. पर नही. गुंजाइश नही थी. आम उन्होने किनारे रख दिए और ४० रुपये उसकी तरफ बढ़ा दिए. ३ रुपये जो वापस मिले वो अपनी साड़ी के आँचल में गाँठ बना कर बाँध लिए. दिल भर आया. शायद पहली बार मुझे आम अच्छे नही लग रहे थे.